पागलों की इस शहर में मैं एक इनसान हूँ
सब दुखो से सब सुखो से मै बहुत अन्जान हूँ
उस चीख में मै दब गई उस भीड़ में मै खो गई
ये राह कैसी लोग कैसे बस दुखों का अंबार है
ना राग हैं ना रोशनी अतृप्त मन का वास है
ये जिंदगी ना जी सकूँगी ना मैं मरना चाहती हूँ
क्या करू मै क्या कहूँ मैं ये दूसरों की उधार है!!!!