
बेखौफ सनम



जीवन एक संग्राम सा है
मन इधर लड़ा तन उधर लड़ा
मन विवश हुआ तन व्याकुल है
दोनों ने संयम हार दिया
तन मन के इस घमासान में
जीवन परिवर्तन अधिक हुआ
इस परिवर्तन की कोई आस न थी
इसकी जरूरत कुछ खास न थी
सुना था ,जब परिवर्तन होता है
मनुष्य बहुत कुछ खोता है
खोने का कोई रंज ना कर
उस पाने की एक आस भली
मैंने परिवर्तन स्वीकार किया
संग्राम का पुनः आगाज किया!!

मेरे मौन को समझता कौन
मेरे निशब्द आत्मा में शब्द डालता कौन
मेरी झुंझलाहट मेरी बेरुखी झेलता कौन
मेरी माँ ही थी और कौन
मन आए तो हाल बताना नहीं तो यूँही टालना
कभी कमजोर पड़ कर सब जताना
कभी शेर की तरह उनसे ही दहाड़ना
मेरे सारे ऐब छुपाकर, मुझे प्यार करता कौन
मेरी माँ ही थी और कौन !
मेरे सारे मरे सपनों को जगाना,
मुझे मुझसे फिर मिलाना, ये सब् करता ही कौन
मेरी माँ ही थी और कौन!!!
प्रियाशा
अब इश्क ना होगा हमसे
कुछ और बतलाकर देख लो
मेरे इस घायल जुनून का
कुछ और इलाज ढूंढ लो
बंद करो इन किस्से को
मेरी किवाड़ मूंद दो
खुश हूं अब इस हिस्से में
अपने हिस्से का सुकू देख लो
मान ली हार मैने छोड़ दिया मैदान मैनें
अब अपने मुख्तलिफ मुसाफिर ढूँढ लो
अब ना होगा इश्क इसे बेशक दफा करो
मुझे कहीं और आज़मा कर देख लो!!
प्रियाशा
खामोशियो को मैंने सिमटते देखा है
इन ख्वाहिशों को चहकते देखा है
मैंने हर मौसम को बदलते , फिर
खुद को संभलते देखा है!
सच्चे, झूठे, अपने पराये सबको रंग बदलते देखा है
उस दौर से गुजरे है जनाब जहां
ख़ुद को औरो का, औरों को गैरो का होते देखा है
मुझे मत दो दिलासे, मुझे मत दो तस्सलिया
ना दो साथ होने की ख्वाहिशें, अब
मैंने खुद ही पूरा होने का सपना देखा है!!
बहुत सुकून है इस अधूरेपन में क्योंकि,
पूरेपन में मैंने खुद को खोते देखा है।
शून्य मांगा था सभी से
शून्य पर लाकर छोड़ गए
क्या शून्य बीता आधा जीवन?
क्या शून्य था मेरा वो यौवन?
शून्य थी मेरी बेबाकी
शून्य था मेरा लड़कपन
मेरा तो सच वो शून्य था
मेरा तो हर कर्म शून्य था!
पर इस शून्य का मुझे दुःख नही
मेरे सब्र का यही परिणाम है!
.मेरे कल का ये आधार है!!
जीवन का इसी में विस्तार है!
अगले हर रण में यह शून्य मेरा हथियार है!
पागलों की इस शहर में मैं एक इनसान हूँ
सब दुखो से सब सुखो से मै बहुत अन्जान हूँ
उस चीख में मै दब गई उस भीड़ में मै खो गई
ये राह कैसी लोग कैसे बस दुखों का अंबार है
ना राग हैं ना रोशनी अतृप्त मन का वास है
ये जिंदगी ना जी सकूँगी ना मैं मरना चाहती हूँ
क्या करू मै क्या कहूँ मैं ये दूसरों की उधार है!!!!
अदायगी
मुझे नफरत है तेरे होने से
अब ना अफसोस होगा तुझे खोने से
एहसास ए उल्फत भी खत्म होगा
तेरी कुरबत का नूर भी दफ़न होगा
तेरे बिखरने का नजारा भी सालिम होगा
तू गैरों का हाकिम होगा
अपनों के जहल का खादिम होगा
मेरा मंजिले ए अरमाँ भी यही होगा
तू टूटे तारे सा मजबूर होगा
तेरी अय्यारी तेरी फ़ितरत तुमपर ही फ़ना होगा