जज्बातें जुनून था मेरा इश्क
लफ़्ज़ों का सुकून था मेरा इश्क
मेरे लिए फिरदौस था मेरा इश्क़
अब ना जाने कहाँ गुम हुआ वो इश्क
ना सिरहाने में दिखता है ना दरवाजे पर बैठा है
मुख्तलिफ रास्तों में भटका है, किसी अनजाने कों ढूढ़ता है l
तेरी आश मे बैठा है, किसी की काश में बैठा है
मुझसे आकर मिल तेरी ही तलाश में बैठा है ।
फ़ितरत
रिहाई मांगी थी हमने तुमने बेवफाई दे दी
अपने हिस्से की खुशिया मांगी हमने
सारे जन्नत की बेरुखाई तुने हमें दे दी
दिल ने एक ख्वाब संजोया था खुद से
तूने टूटे ख्वाब की पेशवाई हमें दे दी
चुन चुन कर किस्से तमाम करता है तू
दूसरो की बारी में रेहनुमाई तूने देदी
फिर भी भरोसा टूटा नहीं मीर का
तू ख़ुदा है , मेरे कर्मों की कारवाई तुझे दे दी!!
दग़ा
हुस्न के कशीदे वो पढ़ते रहे
हम उन पर वो ग़ैरो पर मरते रहे
हम घर आबाद करते रहे
वो हमें बर्बाद करते रहे
फिर भी दम ना भरा तो
हमें वो सरेआम बदनाम करते रहे
ऐसा प्यार किस काम का जनाब
वादे हमसे ख्वाहिशें किसी और की पूरी करते रहें
गमज़दा
हम गलतफ़हमी के शिकार हो गए
तुम्हारे झूठे इश्क़ में बेकार हो गए
ना तू सच्चा ना तेरा रूहे इश्क़ सच्चा
तुम बेवफ़ा सरेआम हो गए
हम तो बस गलतफहमी के शिकार हो गए
गिन कर रख अपनी हसरतों के किस्से
यहाँ हम तेरे इश्क़ में बदनाम हो गए
हम तो बस गलतफहमी के शिकार हो गए
तेरी चाहतों के पैमाने ऐसे बढ़े
तेरी माशूकाओं के चर्चे आम हो गए
हम तो बस गलतफ़हमी के शिकार हो गए
जर्जे जर्जे से बढ़ कर चाहा था जिसे
आज वो किसी ग़ैर के गुलाम हो गए
हम तो बस गलत फहमी के शिकार हो गए
पिंजर इश्क़
अधूरी ख्वाहिशों का मुक्कमल जहाँ भी होगा
मेरी जहाँ में तेरा नामोनिशां ना होगा
तू गैरों से गैर होगा मुझे,
तेरे हर अक़्स से बैर होगा मुझे
जवाँ शाम भी होगी, तेरा शाकी़ भी होगा
उस शब और शाकी में भी तू मुझे ही भूलायेगा
मै तो वो परिंदा हुँ जो आजाद होगा
ना फिर मुझे पिंजर मिले ना परिंदगी!
मैं खुद ही अपना आंसमा बनाउंगा!!
बेवफ़ा – ग़ैर
उन्हीं की है इनायते की मुझमें मेरा कुछ नहीं
सही था वो मिला नही, गलत तो अब रहा नहीं
अपनों की शिकायतों का मैं तो राज़ बन गया,
सहा बहुत थमा नहीं शिकायतों का कारवां
उन्हीं की है इनायते कि मुझमें मेरा कुछ ना रहा!
बन गयी कहानियाँ तेरा मेरा वो जहाँ
तू खुश रहें सदा वहाँ यहीं हुई मेरी वफ़ा,
तू दर्द दे के भी रहनुमा बना रहा
मैं दर्द सह के भी बेवफ़ा चुना गया,
उन्हीं की है इनायते की मुझमें मेरा कुछ ना रहा!!!
काफ़िराना
इश्क किया मैने कभी इल्ज़ाम नहीं लगाया
तुम्हारी बारी में तुमने मिज़ाजे ग़ालिब तक सुनाया!
अब मेरी रुक्सत का नज़ारा भी हसीं होगा,
तू गैरो में सही होगा, मुझमें मीर घुला होगा!
तू बस अल्फ़ाज में होगा, किसी के ताज़ में होगा,
मैं तो किसी अपने की रुह मे नाज़ में होंगा!
जब तू किसी कीमती पश्मीने में – लिपटा होगा ,
मेरा इश्क मेरे साथ चलने का दम भरेगा!
नज़राना
हम अपनी हदे भूल जाएगे
फिर से तुम्हे खड़े हो कर दिखाएंगे
तुम्हारी नापाक हसरतों ने,
मेरे पाक दामन का हिसाब बताया था
हम अपनी पाकिज़ा मुहब्बत से तुम्हें जलायेगे
यकीन करना इस बार तुम नहीं होगें
तुम्हारी हसरतों का मलाल नहीं होगा
हम खुद ही खुद के हो जाएंगे
तुम्हारी हदों में हम कभी नहीं अब आएगें !