नज़राना

हम अपनी हदे भूल जाएगे
फिर से तुम्हे खड़े हो कर दिखाएंगे
तुम्हारी नापाक हसरतों ने,
मेरे पाक दामन का हिसाब बताया था
हम अपनी पाकिज़ा मुहब्बत से तुम्हें जलायेगे
यकीन करना इस बार तुम नहीं होगें
तुम्हारी हसरतों का मलाल नहीं होगा
हम खुद ही खुद के हो जाएंगे
तुम्हारी हदों में हम कभी नहीं अब आएगें !

Published by Priyanka Priyadarshini

unpolished poet.

10 thoughts on “नज़राना

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