अधूरी ख्वाहिशों का मुक्कमल जहाँ भी होगा
मेरी जहाँ में तेरा नामोनिशां ना होगा
तू गैरों से गैर होगा मुझे,
तेरे हर अक़्स से बैर होगा मुझे
जवाँ शाम भी होगी, तेरा शाकी़ भी होगा
उस शब और शाकी में भी तू मुझे ही भूलायेगा
मै तो वो परिंदा हुँ जो आजाद होगा
ना फिर मुझे पिंजर मिले ना परिंदगी!
मैं खुद ही अपना आंसमा बनाउंगा!!
Good 🙂
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Thnks
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